Thursday, August 22, 2013

यह क्या कह दिया नेता जी!

जुबान फिसल जाने का मुहावरा भी है और कभी-कभी मौका भी माना जाता है, जैसे विवाह या त्यौहार के अवसर पर व्यंग्य बाण चलाते हुए हंसी-ठिठोली का आम रिवाज है। उस अवसर पर कही गई बातों का न तो बुरा माना जाता है और न ही उसे दुभार्वनापूर्ण कहा जाता है। 
लेकिन ऐसे किसी भी अवसर के अभाव में अचानक कतिपय बड़े नेताओं द्वारा ऐसी बात कह देना निश्चय ही चिंता का विषय बन जाता है और ऐसा ही एक विषय स्वनाम धन्य एक बड़े नेता ने कुछ दिन पहले ही कहकर चौंकाने के साथ-साथ सोचने पर भी विवश कर दिया है। कहने वालों में उन्हीं के दल के अन्य शीर्षस्थ नेताओं ने भी उनकी बात पर बिना ध्यान दिये बल दिया है और वह शब्द है ‘काँग्रेस मुक्त भारत’। 
राजनीति में सत्ता पाना या खोना एक स्वभाविक प्रक्रिया है, जब भी एक या दो अथवा कई राजनीतिक दल सत्ता का पत्ता पाने को चुनाव लड़ते हैं तो उसमें हार-जीत की संभावना सदैव बनी रहती है जिसे बहुमत मिलता है वह सत्ताधीश हो जाता है और शेष विपक्ष की शोभा बढ़ाते हैं।
लोकतंत्रा में यह स्थिति हर बार चुनाव के पश्चात आती है और चुनाव परिणाम को जनादेश मानते हुए सभी दल शिरोधार्य करते हैं। किन्तु अबकी बार दल विशेष के एक उभरते हुए और चुनाव प्रचार के शीर्ष पर विराजमान किये गये नेता ने एक ऐसा जुमला ईजाद करके उसे चुनावी अखाड़े में लहरा दिया है जिसका अर्थ या तो वो जानबूझकर गलत लगा रहे हैं अथवा दूसरों के ज्ञान की परीक्षा लेना चाह रहे हैं।
जी हां, उनके शब्द ‘काँग्रेस मुक्त भारत’ का यह उदघोष कितना ठीक और सटीक है यह बहस का विषय तो नहीं अलबत्ता अज्ञान अथवा चिंतन का विषय अवश्यमेव है, क्योंकि अभी पिछले दिनों ही पोलियो के संबंध में उन्मूलन अभियान के अंतर्गत पोलियो मुक्त भारत का नारा दिया गया था। हो सकता है नेता जी ने इसी से प्रभावित होकर इसमें संशोधन करते हुए पोलियो की जगह अपने राजनीति में धुर विरोधी दल का नाम जोड़कर वाहवाही लूटने की कोशिश की है। किन्तु अत्यंत खेद की बात है कि जिस बात को भारतीय संस्कृति में कभी दुश्मन के लिए भी अनुपयुक्त माना गया है वह सत्ताधारी दल के लिए क्या समझकर प्रयोग कर दिया, यह समझ से परे की बात है। पाकिस्तान समेत दुश्मन देशों के लिए भी कभी ऐसा नहीं कहा गया कि संसार उनसे मुक्त हो जाये, अर्थात जो बात शत्रु के लिए भी ठीक नहीं मानी जाती वही बात एक ज्ञानी-ध्यानी नेता द्वारा सवा सौ करोड़ के देश में सवा सौ वर्ष से भी अधिक पहले की स्थापित काँग्रेस पार्टी के लिए यह कह देना कि ‘काँग्रेस मुक्त भारत’ का अभियान चलाया जाए और जनता उसमें सहयोग दे सरासर संकीर्णता और शत्रुता की भावना ग्रसित है तथा किसी भी प्रकार से न तो सुनने योग्य है और अपनाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। हां, परमात्मा अगर सदबुद्धि दे तो ऐसे उदघोष को वापिस लेकर क्षमा-याचना सहित उसे दुरुस्त करके उसका उपयोग किया जाए तो भी गनीमत ही मानी जाएगी जैसा कि हमारे यहां कहा जाता है कि सुबह का भूला शाम को भी घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते और वाकई जुबान फिसलने वाली बात समझकर शायद दूसरा दल भी दर-गुजर कर सके तो भी इसे राजनीति में एक स्वस्थ वातावरण को बनाए रखने का सदप्रयास ही माना जाएगा, वरना जिसने लटठ  बजाने की ही ठान रखी हो तो उसके लिए तो पानी किधर से भी आए वह तो कटिबद्ध रहता है उसके शुभारंभ के लिए, लेकिन ईश्वर से प्रार्थना है कि उस घड़ी से तो इस देश को राम बचाये।