Thursday, February 3, 2011

राजेंदz कुमार-मोहम्मद रफी : गायक-नायक वही भूमिका नई

  • फिल्म जगत के प्रसिद्ध गायक व नायक की जुगलबंदी श्रृंखला में आज हम पाठकों के लिये पेश कर रहे हैं प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता जिन्हें ‘जुबली कुमार’ खिताब भी दिया गया राजेंदर कुमार और उनके लिए गायन का उत्तरदायित्व संभालने वाले मशहूर गायक मोहम्मद रफी साहब का।
  • सभी पाठकों को याद होगा ‘तेरी प्यारी-प्यारी सूरत को किसी की नजर न लगे’, जी हां यह प्रसिद्ध गीत फिल्म ‘ससुराल’ का है जिसे शंकर-जयकिशन के संगीत निर्देशन में मोहम्मद रफी ने इतनी खूबसूरती से गाया कि यह बच्चे-बच्चे की जुबान पर ऐसा चढ़ा कि हर गली-मोहल्ले में सुनाई देता था। इसके लेखक रहे शैलेंदर-हसरत की जोड़ी के जनाब हसरत जयपुरी साहब जिन्होंने फिर एक बार राजेंदर कुमार की फिल्म ‘आरजू’ में एक बहुत खूबसूरत गजल लिखकर दी और ठीक पहले की तरह शंकर-जयकिशन के संगीत निर्देशन में ही इसे पेश किया मोहम्मद रफी ने बड़े ही दिलकश अंदाज में ‘छलके तेरी आंखों से शराब और ज्यादा’। वैसे गजल में कम से कम पांच मिसरे होते हैं लेकिन इस गीत में केवल तीन मिसरों से ही वह बात पैदा की गई जो अनेक बरसों तक तो क्या आज भी सुनने वाले का दिल मचलाना का जज्बा रखते हैं और उसकी जुबान भी खुद-ब-खुद दोहराने लगती है ‘जाने क्या बात है तेरी महफिल में सितमगर धड़के है दिल-ए-खाना खराब और ज्यादा’।
  • यह भी एक संयोग ही रहा कि जब-जब शंकर-जयकिशन की संगीतकार जोड़ी के साथ गीतकार शैलेंदर और हसरत ने गीत लिखे और फिल्म के राजेंदर कुमार ही रहे तब-तब गीतकार हसरत के लिखे हुए ही गीत उन पर ज्यादा जमे और चले। जैसे कि उुपर दो उदाहरण दिये गये अब तीसरा और देखिये जिसे सुनते ही आप एकदम कह उठेंगे वाकई बिल्कुल ठीक फरमा रहे हैं आप, तो वह गीत है फिल्म ‘सूरज’ का ‘बहारो फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है हवाओ रागनी गाओ मेरा महबूब आया है’। हालांकि गायक मोहम्मद रफी और नायक राजेंदर कुमार का गायक-नायक वाला नाता कई और फिल्मों में भी खूब शानदार रहा और एक से एक बेहतरीन प्रस्तुतियां दीं जैसे कि फिल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ में बसंत देसाई और भरत-व्यास की कलम से निकले ‘मैंने पीना सीख लिया’ या ‘कह दो कोई ना करे यहां प्यार’। फिल्म ‘मेरे महबूब’ में शकील और नौशाद की जुगलबंदी में तैयार हुए ‘मेरे महबूब तुझे मेरी मुहब्बत की कसम’ अथवा फिल्म ‘पालकी’ में फिर इसी जोड़ी के हुनर से सजी गजल और फिल्म ‘गहरा दाग’ में भी शकील और रवि की जोड़ी ने जो मधुर रचना दी वह भी तथा इसके अलावा फिल्म ‘घराना’ में तो इन दोनों ने बाकायदा अपने फन का ऐसा जौहर दिखाया कि उसे फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला वह गीत था ‘हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं’। वैसे यहां यह लिखना भी जरूरी है कि उुपर दिये गये गीतों में भी हसरत जयपुरी के तीनों गीतों ने फिल्मफेयर अवार्ड पर कब्जा करके अपनी धाक जमाई।
  • नायक राजेंदर कुमार ने प्रसिद्ध अभिनेता धर्मेन्दर के साथ फिल्म ‘आई मिलन की बेला’ में हीरो के तौर पर काम किया और उसमें भी गायक रफी साहब ने ही उनके लिए आवाज दी और वे गीत भी मशहूर हुए। आनंद बक्शी साहब के गीतकार बनने पर उनकी कलम से भी निकले कई गीतों पर गायक रफी और नायक राजेंदर कुमार की जोड़ी ने अदाएं दिखाईं और कामयाबी के साथ-साथ आज भी उनकी पसंद बरकरार है। विशेष रूप से फिल्म ‘गौरा और काला’ में उनका डबल रोल होते हुए दोनों किरदारों के लिए आवाज रफी साहब ने ही दी। अपने निर्देशन में बनी पहली फिल्म ‘गंवार’ में भी नायक राजेंदर कुमार ने रफी साहब की आवाज को लिया और ‘पीकर शराब खेलूंगा मैं तो शबाब से’ जनाब राजेंदर-कृष्ण की इस रचना को पहली बार संगीतकार नौशाद ने संगीत देकर संवारा और एक और गीत ‘यही धरती-यही धरती’ जैसी खूबसूरत रचना भी इसी फिल्म ने दी। इनका एक और मशहूर गीत ‘न झटको जुल्फ से पानी ये मोती टूट जायेंगे तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा हमारे दिल टूट जायेंगे’। इसके अलावा भी उनके अनेक और भी लोकप्रिय गीत हैं जैसे फिल्म ‘मां-बाप’ में ‘ले लो ले लो दुआएं मां-बाप की सर उतरेगी गठरी पाप की’ और ‘तलाक’ फिल्म में भी गायक रफी साहब ने नायक राजेंदर कुमार के लिये आवाज दी।
  • ‘झुक गया आसमां भी’ राजेंदर कुमार की ही एक ऐसी फिल्म है जिसको हमेशा संगीत के लिए तो याद किया ही जायेगा एक ऐसी कहानी और अजीब रोल के लिए भी हमेशा याद रहेगी की व्यक्ति की मृत्यु होने के पश्चात उसे वापस धरती पर भेज दिया जाता है लेकिन चूंकि उससे पहले ही मृतक का दाह-संस्कार हो जाता है तो वह आत्मा किस प्रकार इस लोक में अपना जीवन व्यतीत करती है वह दर्शाया गया है। आज तक हिन्दी फिल्म जगत में ऐसी फिल्म दोबारा नहीं लिखी गई। इसका प्रसिद्ध गीत ‘लो झुक गया आसमां भी इश्क मेरा रंग लाया ओ प्रिया-ओ प्रिया’ इसी गायक-नायक की जोड़ी का एक और नायाब नगीना है।
  • वास्तव में ही राजेंदर कुमार फिल्म जगत के अकेले ऐसे हीरो रहे जिनके साथ न तो कभी आयकर वालों का विवाद पैदा हुआ और न ही किसी प्रकार का फिल्मी स्कैंडल बाहर आया और उनकी फिल्में ऐसी चलीं कि दिल्ली, मुंबई में एक ही समय में छह-छह सात-सात सिनेमाघरों में उन्हीं की फिल्में चलती रहती थीं और अधिकांश फिल्मों ने जमकर सिल्वर जुबली मनाई और शायद इसीलिए इस हीरो को राजेंदर कुमार की जगह ‘जुबली कुमार’ का नाम भी दिया गया। वे आज हमारे साथ नहीं हैं लेकिन उनकी अदायगी और उनकी आवाज के रूप में रफी साहब की गायकी दोनों ही अमर हो गई हैं और फिल्म जगत के अस्तित्व तक सदा-सदा के लिए यादगार नगमे छोड़ गये हैं।

2 comments:

मदन शर्मा said...

वाह ! क्या बात है!इसके लिए धन्यवाद.

मदन शर्मा said...

वाकई बिल्कुल ठीक फरमा रहे हैं आप, वास्तव में राजेंदर कुमारआज हमारे साथ नहीं हैं लेकिन उनकी अदायगी और उनकी आवाज के रूप में रफी साहब की गायकी दोनों ही अमर हो गई हैं
यादगार, शानदार और एक बेहतरीन प्रस्तुति