मधुशाला
चाट-चाट कर पीते हैं ये दारू का मादक प्याला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
बहिन, बेटियां, माताएं दरुओं को लगती हैं साकी
लज्जा, हया, शर्म, मर्यादा, रहे न आंखों में बाकी
हर कुकृत्य, व्यभिचार पियक्कड़ से करवा लेती हाला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
मातम का माहौल बना दे यह दारू त्यौहारों में
दानवता भर देती है यह मानव के व्यवहारों में
बात-बात में चलवा देती यह दारू चाकू-भाला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
कच्ची-पक्की ठर्रा-देशी या कि विदेशी हो हाला
पीने वाले राम नाम जैसा रटते हाला-हाला
पंचामृत को त्याग-चाटते कुत्तों की झूठी हाला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
गंगा जल के बदले जो दारू से रोज नहाते हैं
घर से निकले मंदिर को पर पहुंच कलारी जाते हैं
प्रभु के परम पुजारी जैसा पूज्य लगे दारू वाला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
परम हितू लगती है इनको नागिनियां साकी वाला
पत्नी की आंखों में दिखती है इनको दहकी ज्वाला
गौ-रस लगे जहर सा इनको सुधा-सदृश विष का प्याला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
गंगा जैसी ही पवित्र के समझें नरदे नाली को
बहिनों को मासूका कह दें, बहिन कहें घरवाली को
चंदन त्याग, भट्ठियों की कालिख से करते मुंह काला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
न्याय धर्म इमान मद्य की बोतल में बिक जाते हैं
दारू पीकर ये दुश्मन को गुप्त रहस्य बताते हैं
दारू दफ्तर में करवाती है अक्सर पीला-काला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
बहुमत दिलवाती अयोग्य को कुलटा मद्य चुनावों में
जहर यही घुलवा देती है सामाजिक सद्भावों में
सच्चाई के मुंह पर भी दारू जड़ देती है ताला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
- आचार्य भगवत दुबे
पिसनहारी, जबलपुर-४८२००३, म.प्र.
मो. : ०९३००६१३९७५
चाट-चाट कर पीते हैं ये दारू का मादक प्याला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
बहिन, बेटियां, माताएं दरुओं को लगती हैं साकी
लज्जा, हया, शर्म, मर्यादा, रहे न आंखों में बाकी
हर कुकृत्य, व्यभिचार पियक्कड़ से करवा लेती हाला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
मातम का माहौल बना दे यह दारू त्यौहारों में
दानवता भर देती है यह मानव के व्यवहारों में
बात-बात में चलवा देती यह दारू चाकू-भाला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
कच्ची-पक्की ठर्रा-देशी या कि विदेशी हो हाला
पीने वाले राम नाम जैसा रटते हाला-हाला
पंचामृत को त्याग-चाटते कुत्तों की झूठी हाला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
गंगा जल के बदले जो दारू से रोज नहाते हैं
घर से निकले मंदिर को पर पहुंच कलारी जाते हैं
प्रभु के परम पुजारी जैसा पूज्य लगे दारू वाला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
परम हितू लगती है इनको नागिनियां साकी वाला
पत्नी की आंखों में दिखती है इनको दहकी ज्वाला
गौ-रस लगे जहर सा इनको सुधा-सदृश विष का प्याला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
गंगा जैसी ही पवित्र के समझें नरदे नाली को
बहिनों को मासूका कह दें, बहिन कहें घरवाली को
चंदन त्याग, भट्ठियों की कालिख से करते मुंह काला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
न्याय धर्म इमान मद्य की बोतल में बिक जाते हैं
दारू पीकर ये दुश्मन को गुप्त रहस्य बताते हैं
दारू दफ्तर में करवाती है अक्सर पीला-काला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
बहुमत दिलवाती अयोग्य को कुलटा मद्य चुनावों में
जहर यही घुलवा देती है सामाजिक सद्भावों में
सच्चाई के मुंह पर भी दारू जड़ देती है ताला
पशु, मनुष्य, शैतान सभी का भेद मिटाती मधुशाला
- आचार्य भगवत दुबे
पिसनहारी, जबलपुर-४८२००३, म.प्र.
मो. : ०९३००६१३९७५
No comments:
Post a Comment