Monday, April 4, 2011

देश की दौलत को बेरहमी से यूं न लुटाएं



फरवट फरीदाबादी

पुरानी कहावत है कि ‘माल-ए-मुफ्त दिल-ए-बेरहम’ इसी की तर्ज पर देश के कर्णधारों से निवेदन है कि देश की उस बेशकीमती दौलत को जो बड़ी मुश्किल से देश की जनता ने बेचारे वित्त मंत्रियों के कितने आगzहों पर जोड़-जोड़कर जमा कराई है उसे केवल खिलाड़ियों को विश्व-कप के नाम पर इतनी बेरहमी से न लुटाया जाये। ठीक है उन्होंने जी-जान लड़ाकर अपना हुनर दिखाते हुए देश के लिए विश्वकप जीता है लेकिन इसका अर्थ यह तो नहीं कि देश की इतनी बेशकीमती दौलत केवल उन्हीं पर लुटा दी जाये। और कुछ प्रदेश तो ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ या ‘ दाल-भात में मूसलचंद’ बनने की कोशिश करते हुए खामख्वाह ही इन खिलाड़ियों के नाम पर करोड़ों रुपये की धनराशि, मकान और अलंकरण देने की घोषणाएं कर रहे हैं। क्या इनमें से किसी प्रदेश के कर्णधार ने किसी सैनिक द्वारा देश की रक्षा करते हुए शहीद होने पर कभी चौथाई करोड़ की भी घोषणा की है, जो व्यक्ति सरहद पर सर्दी-गर्मी झेलता हुआ देश की रक्षार्थ अपने प्राणों की भी बलि दे देता है क्या उस बलिदान से भी यह जीत का कप अधिक मूल्यवान है।

अपनी खुशी को जाहिर करते हुए केवल इनाम तक सीमित रहें तब तो ठीक लगता है अन्यथा इस तरह उन्माद का प्रदर्शन करते हुए करोड़ों की धनराशि को इस तरह आनन-फानन में मुक्त-हस्त से बांट देना किसी भी दृष्टिकोण से न तो आवश्यक है और न ही महत्वपूर्ण है। शायद वे भूल गये हैं कि इन सभी खिलाड़ियों को एक सप्ताह में ही कितनी ही कंपनियों के प्रतिष्ठानों के अत्यधिक मूल्यवान विज्ञापन प्राप्त हो जाने हैं और जैसे कि विश्वकप विजेता टीम के कप्तान आज सबसे अधिक ¼बाWलीवुड सितारे अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान से भी ज्यादा½ का एक ही विज्ञापन हथिया कर एक ही झटके में 30 करोड़ रुपए तक की राशि कमा चुके हैं।

हम यहां यह कदापि नहीं कहते कि और न किसी तरह का इस बात से इंकार है कि विश्वकप जीतना अपने आप में एक श्रेष्ठ कीर्तिमान है और उसके लिए देश-प्रदेश का ‘रत्न’ का सम्मान देना तो ठीक जचंता है लेकिन इसके एवज में अपार धनराशि का यूं होड़ लगाकर प्रदर्शन और घोषणा करना निहायत अनावश्यक और अनुचित कदम है। हो सकता है इसको पढ़कर कई पाठकगण हमसे सहमत न हों, मगर अपने देश की हालत को देखते हुए जहां पर कोई भी विपदा आते ही इन्हीं प्रदेशों के कर्णधार बगलें झांकने लगते हैं और केंदz की ओर ताकने लगते हैं तो ऐसे लोगों को तो कम से कम समझना चाहिए और देश की 40 प्रतिशत गरीब जनता को भी ढांढस बंधाने के लिए कुछ करना चाहिए।

बुजुर्गों ने कहा है जोश में हमेशा होश को साथ रखना चाहिए और उसका यही तकाजा है कि हम जो भी काम करें सोच-समझकर करें और ऐसा करें जो सर्व हितैषी हो और सर्व मंगलकारी हो। जहां पर लोग डेढ़ लाख रुपये की टिकट खरीदकर मनोरंजन जुटाते हों ऐसे खेल को तो सरकार को अलग से ध्यान देकर इन पर कुछ रोक लगानी चाहिए। कल तक इन्हीं खेलों में करोड़ों रुपये का सट~टा लगाकर खिलाड़ियों को मैच फिक्सिंग की ट्रेनिंग देने वालों की तो सरकार अभी तक थाह नहीं ले पाई है और आज स्वयं ही भावावेश में उन्हीं लोगों के साथ बह रही है, क्या फर्क रह गया फिर सट~टा लगाने वालों में और सरकार के इन कर्णधारों में। उन लोगों ने पहले पैसा लगाया था बाद में फल पाने की आशा में और इन्होंने अपना नाम चमकाने की आशा में सरकारी कोष से पैसा लुटाया है।

एक तो इस खेल के लिए वैसे ही देश में अकर्मण्यता फैल रही है। एक हफ्ते पहले ही दफ्तरों में काम बंद या ढीले हो जाते हैं और उस दिन तो अब सरकार स्वयं छुट~टी करने लगी है तो अब इसे और महिमा-मंडित करके क्या करना और क्या दिखाना चाहती है सरकार। फिर अकेला क्रिकेट ही हमारा राष्ट्रीय खेल नहीं है। इसके मुकाबले आज भी देश में जो अन्य खेलों के लब्ध-प्रतिष्ठित खिलाड़ी तो भुखमरी के कगार पर हैं और एक ही खेल में करोड़ों के वारे-न्यारे हैं, क्या यह उचित है? इस प्रश्न का उत्तर भी हमें अपने अंतर्मन से प्राप्त करना चाहिए।

देश की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाले किसी भी कार्य के लिए केवल धन लुटाकर ही प्रदर्शन करना ही कोई अकेला और एकमात्र रास्ता नहीं है। इसके लिए अन्य साधन अपनाने चाहिए, नये तरीके खोजने चाहिए जैसे उन्हें राष्ट्रीय सम्मान देना, उन्हें नये-नये अवसर प्रदान करना, उद्योग व खेलों के जरिये कोई रिसर्च कार्य योजना तैयार करवाना तथा क्रिकेट के नये मैदान बनवाना ¼जैसे कि ऐसे भूमि जो मीलों-मील तक बंजर की स्थिति में है जहां न खेती होती है और न ही वह किसी और काम आती है ऐसी जगहों पर नये मैदान तैयार करवाना½ की योजना बनाकर उन्हें जिम्मेदारी सौंपना आदि ऐसे कई तरीके हो सकते हैं जिससे उनका अनुभव और देश के संसाधन दोनों का संयुक्त उपयोग करके भविष्य की नई दिशा तय की जा सकती है। रुपया तो आपने आज बांट दिया और कल वह संभाल ही नहीं पाया तो दोनों का उद~देश्य ही व्यर्थ हो गया। अत: हमारा निवेदन है कि इन निर्णयों पर सोच-समझकर विचारपूर्वक परिणामोन्मुखी उद~देश्यों की पूर्ति हेतु सामूहिक कदम उठाये जायें जिससे कि देश में इसी खेल के भी और दीवाने पैदा हो सकें और नई पीढ़ी में से धोनी, तेंदुलकर, सहवाग और युवराज जैसे खिलाड़ी पैदा किये जायें, उन्हें सिखाया जाये ताकि कल को न हमें बल्लेबाजों की कमी हो और न ही गेंद फंेकने वालों की।

सही बात तो यह है कि आज एक ही खेल में पूरा देश इतना अधिक उन्मत्त हो चुका है कि शेष खेल बेहद उपेक्षित हैं और न चाहते हुए भी पूरी कोशिश करने के बाद भी वे अपने अंतिम दिन गिनने को मजबूर हैं। इस स्थिति को भी समाप्त करना हमारी ही जिम्मेदारी है और अमेरिका-इंगलैंड या जापान से नहीं आने वाला हमारी मदद के लिए। हमें खुद ही अपना संरक्षक बनकर दूसरे खेलों को भी कप जीतने की श्रेणी में शामिल करना है और उसके लिए धैर्य और साहस के साथ-साथ धन की आवश्यकता भी जरूर पड़ेगी तो पुराने अनुभवों को देखते हुए हम अपने उपलब्ध साधनों को वहां तक बचाकर रखें और उसका सदुपयोग करें। इसी उद~देश्य के साथ यह निवेदन किया गया है इसे अन्यथा न लें वरना जीत की खुशी हमें भी आप से कहीं भी किसी भी क्षण कम नहीं है। बस फर्क सिर्फ उसके मनाने के तरीके से है।

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